जिंदगी में यही फ़लसफ़ा रहा मेरा कि .... अपने आस पास किसी को रोटी के लिए तरसना ना पड़े।

पिछली रात बड़ी बेचैनी से कटी.... बमुश्किल सुबह एक रोटी खाकर घर से अपनी दुकान के लिए निकला..... आज किसी के पेट पर पहली बार लात मारने जा रहा हूं ये बात अंदर ही अंदर कचोट रही है .... जिंदगी में यही फ़लसफ़ा रहा मेरा कि .... अपने आस पास किसी को रोटी के लिए तरसना ना पड़े ..... पर इस विकट काल मे अपने ही पेट पर आन पड़ी है... दो साल पहले ही अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर कपड़े का शोरूम खोला था मगर दुकान के सामान की बिक्री, अब आधी रह गई है.... अपनी ही कपड़े की दुकान मे दो लड़के और दो लड़कियों को रखा है मैंने ग्राहकों को कपड़े दिखाने के लिए... लेडीज डिपार्टमेंट की दोनों लड़कियों को निकाल नहीं सकता... एक तो कपड़ो की बिक्री उन्हीं की ज्यादा है। दूसरे वो दोनों बहुत गरीब है.... दो लड़कों में से एक पुराना है और वो घर में इकलौता कमाने वाला है जो नया वाला लड़का है दीपक .... मैंने विचार उसी पर किया है शायद उसका एक भाई भी है, जो अच्छी जगह नौकरी करता है और वो खुद, तेजतर्रार और हंसमुख भी है उसे कहीं और भी काम मिल सकता है... पिछले सात महीनों में... मैं बिलकुल टूट चुका हूं स्थिति को देखते हुए एक वर्कर कम करना मेरी मजबूरी है😎 यही सब सोचता दुकान पर पहुंचा.... चारो आ चुके थे मैंने चारो को बुलाया और बड़ी उदास हो बोल पड़ा.. देखो,दुकान की अभी की स्थिति तुम सब को पता है,मैं तुम सब को काम पर नहीं रख सकता.... उन चारों के माथे पर चिंता की लकीरें,मेरी बातों के साथ गहरी होती चली गई, मैंने बोतल के पानी से अपने गले को तर किया.... किसी एक का हिसाब आज कर देता हूं.... तो दीपक तुम्हें कहीं और काम ढूंढना होगा.... जी अंकलजी.....!! मैंने उसे पहली बार इतना उदास देखा... बाकियों के चेहरे पर भी कोई खास प्रसन्नता नहीं थी लेकिन एक लड़की जो शायद उसी के मोहल्ले से आती है,कुछ कहते कहते रुक गई.... क्या बात है, बेटी.... तुम कुछ कह रही थी....❓ अंकल जी,इसके भाई का भी काम कुछ एक महीने पहले छूट गया है और इसकी मम्मी बीमार रहती है.... मेरी नजर दीपक के चेहरे पर गई.... आंखों में ज़िम्मेदारी के आंसू थे जो वो अपने हंसमुख चेहरे से छुपा रहा था मैं कुछ बोलता कि तभी एक और दूसरी लड़की बोल पड़ी अंकल जी,बुरा ना माने तो एक बात बोलूं.... हां..हां....बेटा बोलो ना.... किसी को निकालने से अच्छा है,हमारे पैसे कम कर दो...... बारह हजार की जगह नौ हजार कर दो आप.... मैंने बाकियों की तरफ देखा हां साहब..... हम इतने से ही काम चला लेंगे.... बच्चों ने मेरी परेशानी को,आपस में बांटने का सोच, मेरे मन के बोझ को कम जरूर कर दिया था.... पर तुम लोगों को ये कम तो नहीं पड़ेगा ना....❓ नहीं साहब,कोई साथी भूखा रहे..... इससे अच्छा है,हम सब अपना निवाला थोड़ा कम कर दें...... मेरी आंखों में आंसू छोड़... वह सभी बच्चे अपने काम पर लग गए,मेरी नज़रों में... मुझसे कहीं ज्यादा बड़े बनकर! राधे राधे राधे

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