मिलन जुदाई का संगम

मिलन / जुदाई का संगम हमारे एक पडोसी थे जिनको हम मिस्टर शर्मा के नाम से पुकारते थे। वह बहुत ही मिलनसार और हंस मुख व्यक्ति थे। सब का काम करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उनकी श्रीमती जी बड़े धार्मिक विचारों की हंस मुख महिला थी। वह एक सरकारी स्कूल मे अध्यापिका के पद पर कार्य रत थी और उनके पति मिस्टर शर्मा सरकारी कार्यालय में लिपिक के पद पर कार्य रत थे उनकी शादी हमारी शादी के 1 वर्ष उपरांत हुई थी। शादी के उपरांत उनके चार बच्चे हुए उन्होंनो अपने 4 बच्चों 3 लड़कों और 1 लड़की का पालन पोषण बहुत ही भली भांति किया। उन्हें पढ़ाने लिखाने मे अपनी जिंदगी की जरूरतों का कभी भी ख्याल नहीं किया। सदैव ही अपनी बच्चों की जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए अपनी दोनों की कमाई का अधिकतम हिस्सा खर्च करने में कभी भी कंजूसी नहीं की। बच्चे भी बड़े आज्ञा कारी थे और पढ़ाई मे बहुत होशियार थे। 1 लड़का डॉक्टर बन गया, 1 लड़का इंजीनियर,1 लड़का चार्टेर्ड अकाउंटेंट और लड़की भी डॉक्टर बन गई। अब सभी बच्चों की शादी उनकी मन पसंद के जीवन साथी के साथ बड़ी धूम धाम से कर दी। अपनी जीवन भर की जमा पूंजी और सेवा निवृति के बाद मिली हुई सारी पूंजी बच्चों पर व्यय कर दी। उनके पास जो मकान था वह भी किराये का था जिसमें 40 साल पहले से रहते थे। सोचा था कि मकान मालिक किराये दार से खाली नहीं करा सकता। परन्तु नये क़ानून के अनुसार मकान को मालिक अपनी जरुरत के अनुसार खाली करा सकता है इस आधार पर उन्हें यह मकान खाली करना पड़ा। उन्होंने कभी एक 3 कमरों का फ्लैट खरीद लिया था अब वहीं पर शिफ्ट हो गए थे। सारे बच्चे नौकरी के सिलसिले में विदेश में जाकर बस गए। वहां पर वह अपने परिवार में बहुत व्यस्त हो गए उनके पास अपने माता पिता से मिलने के लिए समय नहीं मिलता था। मिसेज़ शर्मा हमेशा बीमार रहती थी और बच्चों की याद में घुलती रहती थी। बीमारी की वज़ह से वह विदेश मे बच्चों के पास जा नहीं सकती थी क्योंकि उनको अपनी सहायता के लिए एक सहायिका की आवशयकता रहती थी और विदेश में एक सहायक घर पर रखना असम्भव था। 10 महीने बाद मिसेज़ शर्मा की शादी की गोल्ड़न जुबली थी। बच्चों ने प्रोग्राम बनाया था कि वह अपने माता पिता कि गोल्डन जुबली बहुत धूम धाम से मनाएंगे। इसके लिए एक बढ़िया सा होटल भी बुक कर दिया था। गोल्ड़न जुबली 15 नवंबर को होनी थी जिसमें अभी 1 महीना शेष था मिसेज़ शर्मा ने अपने पास रखे हुए गहनों को 4 भागों में बांट कर एक एक सुंदर सी थैली में रख दिया था साथ में एक एक पत्र भी लिख दिया था जो मिस्टर शर्मा से भी गुप्त रख छोड़ा था। उसने मिस्टर शर्मा को आदेश दिया था कि "मेरी हार्दिक इच्छा है कि यह चारों थैलियां चारों बच्चों को 15 नवंबर को जरूर दे देना "। इस पर मिस्टर शर्मा बोले" भई तुम कहाँ जा रही हो अपने हाथ से दे देना। बच्चों को अच्छा लगेगा " मिसेज़ शर्मा बोल उठी अगर मेरे कान्हा चाहेंगे तो मैं दें दूंगी वरना तुम दे देना " इतना सुनकर मिस्टर शर्मा के दिल को एक सदमा सा लगा परन्तु बनावटी मुस्कराहट चेहरे पर लाकर बोले अजी क्यों नखरे कर रही हो। " 12 नवंबर को सभी बच्चे घर पर इकठ्ठे हो गए और सभी आपस मे मिलकर बहुत खुश थे। सभी रिश्तेदारों को आमंत्रित किया था और उनको देने के लिए सुंदर सा उपहार भी लाकर रखा हुआ था। होटल के भव्य से हाल में जय माला का प्रोग्राम रखा हुआ था। अपने साथ बच्चों को देने के लिए चारों धैले ले जाना नहीं भूली थी। पहले बच्चों ने मिस्टर एंड मिसेज़ शर्मा की बारात निकाली फिर शादी की सारी रस्मे करने के उपरांत जय माला का प्रोग्राम करने से पहले बच्चों ने कहाँ मम्मी कुछ अपने बारे में बताओ। " मिसेज़ शर्मा ने बोलना शुरू किया " प्यारे बच्चों आज तुम सब को बहुत वर्षों बाद हँसते खेलते हुए देखकर मेरा दिल खुशी से झूम रहा है। मुझको लगता है मैं इतनी खुशी अपनी जिंदगी में अंतिम बार देख रही हूं यह कह कर उनकी आँखों मे आंसू बह चले और गला भर आया। रुमाल से आंसू पोंछते हुए बोलना प्रारम्भ किया कि मुझे अपने पुराने दिन याद आ रहें है कैसे ज़ब शादी होती है और बच्चे पैदा होते हैं तो माँ बाप अपना सारा जीवन इनकी खुशियों के लिए अर्पण कर देते हैं। वह अपने सुख दुख का भी ख्याल नहीं रखते। अपने बुढ़ापे के लिए भी कुछ बचा कर नहीं रखते। वह सोचते हैं कि ज़ब हम बूढ़े हो जाएंगे तो हमारा ख्याल रखने के लिए यह बच्चे तो हैं। पर आजकल बच्चों की तो अपनी दुनियां अलग ही होती है वह 7 समुन्द्र पार इतनी दूर जाकर बस जाते है जहाँ पर बीमार माँ बाप का ख्याल रखना नामुमकिन होता है। खैर बच्चे खुश रहें इसमें माँ बाप क़ी ख़ुशी होती है। आजका दिन मेरी जिंदगी का सबसे ख़ुशी का दिन है कि मेरे सारे बच्चे हमारे पास हैं।" फिर मिस्टर शर्मा को कहा " जी जरा चारों थैले तो देना " मिस्टर शर्मा ने चारों थैले मिसेज़ शर्मा को दे दिए। वह थैले एक एक करके सबको दे दिए और कहा बच्चों यह हमारी गोल्ड़न जुबली के अवसर पर एक तुच्छ सी अंतिम भेट है। आपसे एक विनती है कि अगर जरुरत पड़े तो मेरे बाद अपने पापा का ख्याल रखना। इसके बाद बच्चों ने जय माला का प्रोग्राम सम्पन्न करने के लिए पहले मिसेज़ शर्मा के हाथ से मिस्टर शर्मा को जय माला डलवाई फिर मिस्टर शर्मा के हाथ से मिसेज़ शर्मा को जय माला डलवाई। जैसे ही मिस्टर शर्मा ने मिसेज़ शर्मा के गले मे जय माला डाली लोगो ने ताली बजानी चालू की मिसेज़ शर्मा एक दम मिस्टर शर्मा पर बेढाल होकर गिर पड़ी। सब एक दम चौंक पड़े यह क्या हुआ। निरिक्षण किया तो पाया कि वह तो सब को छोड़ कर परलोक सिधार गई थी। जहाँ पर खुशियों का माहौल था वहां पर मातम पसर गया। यह देखकर मिस्टर शर्मा एक दम निढाल से हो गए को जब थोड़ा होश मे आए तो यह देखकर कि उनकी सिर्फ एक ही साथी जो उनके साथ रहती थी वह उन्हें छोड़ कर चली गई तो उन्होंने बहुत भयंकर आवाज में गर्जना की और बोले "अजी मुझे छोड़कर अकेली नहीं जा सकती मै भी साथ आ रहा हूं" और बेजान होकर फर्श पर लुढ़क पड़े। सारा खुशियों का माहौल मातम में बदल गया। संयोग ही कहो अंत समय में सभी बच्चों के कंधो पर सवार होकर दोनों एक साथ भगवान के धाम को चले गए। ऐसे पति पत्नी लाखों में ही कोई बिरले ही सौभाग्यशाली होते है जो साथ साथ प्राण छोड़ते है।

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